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Saturday, January 29, 2022

क्रिस्टलीय ठोसों का वर्गीकरण- क्रिस्टलीय ठोस का वर्गीकरण

क्रिस्टलीय ठोसों का वर्गीकरण- क्रिस्टलीय ठोस का वर्गीकरण


 अवयवी कणों की प्रकृति एवं उनके मध्य कार्यरत् बन्धन बलों के आधार पर क्रिस्टलीय ठोसों को निम्न चार वर्गों में बाँटा गया           

 1. आयनिक ठोस , 2. सहसंयोजी अथवा नेटवर्क ठोस , 3. धात्विक ठोस , 4 . आण्विक ठोस । इनका विवरण निम्नानुसार है

 1. आयनिक ठोस ( lonic Solids ) - आयनिक ठोस वे पदार्थ हैं , जिनके क्रिस्टलों की संरचनात्मक इकाई आयन ( धनायन या ऋणायन ) होते हैं । इन ठोसों में मुख्य बन्धन बल विपरीत आवेशित आयनों के मध्य प्रबल स्थिर वैद्युत् आकर्षण बल होते हैं । प्रत्येक आयन अनेक विपरीत आवेशित आयनों से घिरा रहता है ।

           उदाहरणार्थ- NaCl ठोस में , प्रत्येक Na ' आयन छ : C आयनों से तथा प्रत्येक Cr आयन छ : Na ' आयनों से घिरा रहता है । उदाहरण- KCl , CsCl , CaF2 , Zns आदि ।




इनके मुख्य लक्षण निम्नानुसार हैं 

(i) ये कठोर ( Hard ) तथा भंगुर ( Brittle ) होते हैं ।

 ( ii ) इनके प्रबल स्थिर वैद्युत आकर्षण बल के कारण इनके गलनांक व क्वथनांक उच्च होते हैं । 

( iii ) इनकी वाष्पन ऊष्मा ( Heat of vaporization ) बहुत अधिक होती है , अतः अवाष्पशील ( Non - volatile ) होते हैं । 

( iv ) ये ध्रुवीय विलायकों में विलेय होते हैं । 

( v ) ठोस अवस्था में आयन गमन के लिए स्वतंत्र नहीं होते हैं अतः ये ठोस अवस्था में विद्युत्रोधी होते हैं , किन्तु जलीय विलयन या गलित अवस्था में आयन गमन के लिए मुक्त हो जाते है तथा वे विद्युत् का संचालन करते है अर्थात् ठोस अवस्था में विद्युत् के कुचालक तथा गलित अवस्था एवं जल के विलयन में विद्युत् के सुचालक होते है ।


2. सहसंयोजी अथवा नेटवर्क ठोस ( Covalent or network Solids ) - इन ठोसों में जालक बिन्दुओं पर एक या अधिक प्रकार के परमाणु होते हैं जो एक - दूसरे से सहसंयोजी बंध द्वारा जुड़े रहते हैं । यह सहसंयोजी संरचना द्विविमीय अथवा त्रिविमीय वृहताकार ( Giant ) होती है । उदाहरण - हीरा , सिलिकन कार्बाइड ( SiC ) , सिलिका ( SiO , ) तथा ग्रेफाइट । इनके मुख्य लक्षण निम्नानुसार हैं 




( i ) इनके गलनांक व क्वथनांक अत्यंत उच्च होते हैं । 
( ii) ये विद्युत् के कुचालक होते हैं । ( ग्रेफाइट एक अपवाद है । ) 
( iii ) सहसंयोजी बंध दिशात्मक एवं प्रबल होता है , अतः ग्रेफाइट को छोड़कर सभी सहसंयोजी ठोस बहुत कठोर और भंगुर होते हैं ।

( iv ) सभी विलायकों में अविलेय होते हैं । 

( v ) इनकी गलन की गुप्त ऊष्मा बहुत अधिक होती है , अतः अवाष्पशील होते हैं ।


अपवाद ( Exception ) -ग्रेफाइट भी एक सहसंयोजक ठोस है किन्तु यह मुलायम और विद्युत् का सुचालक होता है । ग्रेफाइट का यह अपवादी गुण उसकी विशिष्ट संरचना के कारण होता है । फाइट में कार्बन परमाणु विभिन्न परतों में व्यवस्थित होते है और प्रत्येक परमाणु उसी परत के तीन परमाणुओं से सहसंयोजक बन्ध बनाता है जिन पर sp संकरण होता है । प्रत्येक परमाणु का चौथा संयोजकता इलेक्ट्रॉन परतों के मध्य उपस्थित रहता है और गमन के लिए मुक्त होता है । ये मुक्त इलेक्ट्रॉन ही शेफाइट को विद्युत् का उत्तम चालक बनाते है । ग्रेफाइट की षट्कोणीय परतें एक दूसरे पर सरक सकती है अतः ग्रेफाइट मुलायम ठोस होता है । अतः इससे उत्तम चिकनाई ( solid Lubricant ) बनाते है ।








3. धात्विक ठोस ( Metallic Solids ) -इन ठोसों में जालक बिन्दुओं पर धातु आयन ( Kernels ) उपस्थित होते हैं जो इलेक्ट्रॉनों के उभयनिष्ठ समुद्र ( Common sea of electrons ) में डूबे रहते हैं । इन ठोसों में धातु आयनों ( कर्नेल ) तथा इलेक्ट्रॉनों के मध्य प्रबल आकर्षण बल ( धात्विक बंध ) कार्य करते हैं । धातु परमाणुओं में से संयोजी इलेक्ट्रॉन निकलकर इलेक्ट्रॉन समुद्र बनाते हैं । 

               उदाहरण- आयरन , सिल्वर , गोल्ड आदि । इनके मुख्य लक्षण निम्नानुसार हैं 

( i ) ये कठोर , आघात्वर्यनीय ( Malleable ) तथा तन्य ( Duc tile ) होते हैं ।

 ( ii ) धातुओं की विशिष्ट चमक भी उनमें उपस्थित मुक्त तथा गतिशील इलेक्ट्रॉन के कारण हो होती है । 

( iii ) इनके गलनांक व क्वथनांक उच्च होते हैं । 

( iv ) धातुओं में प्रत्यास्थता का गुण होता है । 

( v ) मुक्त इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण ये ऊष्मा तथा विद्युत् के सुचालक होते हैं ।





4.आण्विक ठोस ( Molecular Solids ) इन ठोसों में जालक बिन्दुओं पर अणु उपस्थित होते हैं , जिनके मध्य विभिन्न प्रकार के अंतर आण्विक आकर्षण बल जैसे - वाण्डर वॉल्स , द्विध्रुव - द्विध्रुव , H- बंध आदि कार्य करते हैं । इन्हें तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है





( अ ) अध्रुवीय आण्विक ठोस ( Non - polar molecular solid ) इन ठोसों मे अवयवी कण सहसंयोजक बंध युक्त अध्रुवीय अणु ( जैसे - निम्न ताप ( low temp . ) पर H2 , Cl , I2 , CHA , PA आदि ) या वाण्डरवाल बलों द्वारा आकर्षित उदासीन परमाणु ( जैसे- निम्न ताप पर He , Ne , Ar आदि ) होते है अध्रुवीय ठोस के परमाणु अथवा अणु दुर्बल परिक्षेपण बल ( वाण्डरवाल बल ) या लन्डन बल ( london force ) द्वारा बंधे होते है । इनके गुण निम्नलिखित है

 (i) ये ठोस नर्म तथा विद्युत् के कुचालक होते हैं ।

 ( ii ) इनके गलनांक व क्वथनांक कम होते हैं । 

( iii ) दुर्बल अंतराण्विक बलों के कारण सामान्य ताप पर द्रव या गैस होते है ।


( ब ) ध्रुवीय आण्विक ठोस ( Polar molecular solid ) - इन ठोसों में अवयवी कण ध्रुवीय अणु ( जैसे- ठोस HCI , ठोस SO , , ठोस NH , आदि ) होते हैं । इनमें अणुओं के मध्य प्रबल द्विध्रुव - द्विध्रुव आकर्षण बल पाया जाता है । इनमें ध्रुवीय सहसंयोजी बंध ( H - C ) उपस्थित होता है । इसके गुण निम्नलिखित है 

(i) ये कमरे के ताप पर द्रव या गैस होते हैं ।

 ( ii ) इनके गलनांक अध्रुवीय आण्विक ठोसों से अधिक होते है । 

( iii ) ये मुलायम तथा विद्युत् के कुचालक होते हैं । 

( स ) हाइड्रोजन आबधित आण्विक ठोस ( Hydrogen bonded molecular solid ) - इन ठोसों में अवयवी कण सहसंयोजी बंध द्वारा जुड़े होते है , जिनमें हाइड्रोजन परमाणु , F , 0 अथवा N से जुड़ा होता है , जैसे- HE , NH3 , HO आदि । ये अवयवी अणु परस्पर हाइड्रोजन आबंध द्वारा संगुणित रहते है जिसके कारण प्रबल अंतराण्विक आकर्षण बल उपस्थित होता है । इनके गुण निम्नलिखित हैं 

 (i ) ये नर्म तथा विद्युत् के कुचालक होते है । 

( ii ) इनके गलनांक एवं क्वथनांक ध्रुवीय अथवा अध्रुवीय आण्विक ठोसों से अधिक होते हैं । 

( iii ) ये वाष्पशील द्रव अथवा नर्म ठोस के रूप में पाए जाते हैं , जैसे- बर्फ ।


Type of Crystalline Solid And Their Property 



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Friday, January 28, 2022

क्रिस्टल जालक और एकक कोष्ठिका ( CRYSTAL LATTICE AND UNIT CELL )

क्रिस्टल जालक और एकक कोष्ठिका ( CRYSTAL LATTICE AND UNIT CELL ) 




क्रिस्टल जालक - किसी क्रिस्टलीय ठोस की आंतरिक संरचना में अणु , परमाणु या आयन एक विशेष व्यवस्था द्वारा बिन्दुओं के रूप में जमे रहते हैं । त्रिविम आकाश में अणु , परमाणु अथवा आयनों की इस नियमित ज्यामितीय व्यवस्था को ही क्रिस्टल जालक कहते हैं । यह उच्च अनुक्रमिक संरचना है जो कि अवयवी या रचक कणों की प्रकृति के कारण क्रमबद्ध रूप में बनती है । 

क्रिस्टल जालक के अभिलक्षण

 1. किसी क्रिस्टल में अवयवी कणों ( परमाणु , अणु या आयन )की त्रिविमीय व्यवस्था में प्रत्येक कण को एक बिन्दु द्वारा दर्शाया जाता है । इसे जालक बिन्दु ( Lattice point ) कहते है । 

2. क्रिस्टल जालक में प्रत्येक जालक बिन्दु एक अवयवी कण ( परमाणु , अणु अथवा कण ) को दर्शाता है । 

3. जालक बिन्दुओं को सीधी रेखाओं द्वारा जोड़ा जाता है जिससे कि जालक की ज्यामिति को व्यक्त किया जा सके । हॉय के अनुसार , जब अवयवी कणों की पुनरावृत्ति एक सरल रेखा में होती है , तो इसे एकविमीय जालक ( one dimensional ) किसी तल में होने पर द्विविमीय जालक ( Two - dimensional ) ( चित्र 1-8a ) और कणों की पुनरावृत्ति त्रिविम में होने पर त्रिविमीय जालक ( space lattice ) ( चित्र 1-8b ) कहते हैं ।



चित्र 1-7 . ( a ) एक विमीय जालक , ( b ) द्विविमीय जालक 

एकक कोशिका या एकक सेल ( Unit Cell ) - किसी क्रिस्टल जालक का वह सूक्ष्मतम भाग ( बहुत छोटी - छोटी समान इकाइयों ) , जिसकी त्रिविम में बारम्बार पुनरावृत्ति करने पर संपूर्ण क्रिस्टल जालक का निर्माण हो जाता है , उसे एकक कोष्ठिका या इकाई सेल कहते हैं । 



चित्र 1.8 . ( a ) इकाई सेल एवं ( b ) त्रिविमीय जालक 

एकक कोष्ठिका के प्राचल ( Parameters of Unit Cells ) एकक कोष्ठिका को परिभाषित करने वाले पैरामीटर निम्नलिखित हैं 

( i ) एकक कोष्ठिका के तीनों किनारों की विमाओं ( अक्षों की लंबाई ) को a , b और c द्वारा दर्शाते हैं , जो परस्पर लंबवत् हो भी सकते है , अथवा नहीं भी । 

( ii ) किनारों के मध्य कोण ८ , B और द्वारा दर्शाए जाते है इस प्रकार एकक कोष्ठिका इन्हीं 6 पैरा ... c , B और ) द्वारा अभिलक्षित होती हैं ?

एकक या इकाई सेल के प्रकार ( Types of Unit Cells ) इकाई सेल मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं 

1. आद्य या सरल घनीय ( Primitive or simple unit cell ) इस प्रकार के इकाई सेल में जालक बिन्दु केवल कोनों पर उपस्थित होते हैं ।

 2. केन्द्रित एकक कोष्ठिका ( Centred unit cell ) - जब एकक कोष्ठिका में एक अथवा अधिक अवयवी कण कोनों के अतिरिक्त अन्य स्थितियों पर भी उपस्थित होते हैं , तो उसे केन्द्रित एकक कोष्ठिका कहते हैं । यह तीन प्रकार की होती है

 ( a ) फलक केन्द्रित ( Face - centred ) - इस प्रकार के यूनिट सेल में जालक बिन्दु सभी कोनों के साथ - साथ प्रत्येक फलक के मध्य बिन्दु पर भी स्थित होते हैं । जैसे- NaCl . 


( b ) अन्तः केन्द्रित या काय केन्द्रित ( Body - centred ) - इस प्रकार के यूनिट सेल में जालक बिन्दु सभी कोनों के साथ - साथ पूरे यूनिट सेल के मध्य में भी होता है । जैसे- Cscl .

 ( c ) अंत्य केन्द्रित ( End - centred ) - इस प्रकार के यूनिट सेल में जालक बिन्दु सभी कोनों में तथा किन्हीं दो विपरीत फलकों के केन्द्र पर भी स्थित होते हैं ।